यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020

सोरठा अमित के

सोरठा छंद

दाना जब भर आय, माथ नवाथे धान हा।
नामी सरल सुभाय, नाम कमाये लोक मा।।

मने मन म मुसकाय, परहित मा दीया बरे।
परके दरद मिटाय, सफल तभे जिनगी हवे।।

उज्जर सोच विचार, तन मन खुद निरमल लगै।
सफई होय तिहार, जुरमिल जम्मो जब जगै।।

जिनगी के रखवार, रुखराई हा हे असल।
हवा दवा भरमार, राखव येला बड़ जतन।।

पाबे का भगवान, पखरा पूजा तैं करे।
परहित कर इंसान, ढ़ोंगी ढँचरा ढ़ोंगिया।।

सुन्ना जग संसार, ईंटा पथरा ले सजे।
अँगना घर परवार, मया दया ले बड़ फभे।।

साहित नवा बिहान, सुरुज नवा हे आस के।
सिखथन छंद विधान, गुरुवर किरपा पाय के।।

घपटे हे अँधियार, ग्यान बिना जिनगी 'अमित'।
ग्यान जोत तैं बार, उजियारी बर कर उदिम।।

'अमित' सुमत के छाँव, अलहन आवय नइ कभू।
उही हमर हे गाँव, सुमता बसथे जी जिहाँ।।

गुनव फेर मतदान, देश राज खातिर तुमन।
इही असल पहिचान, वोट हवय बड़ कीमती।

कन्हैया साहू 'अमित'~ 9200252055

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चंद्रयान अभिमान

चंद्रयान  ले  नवा  बिहान,  हमर तिरंगा, बाढ़य शान। रोवर चलही दिन अउ रात, बने-बने बनही  हर  बात, दुनिया होगे अचरिज आज, भारत मुँड़़ अब सजगे ताज, ...