002- छंद
छंद सनातन ग्यान हे, काव्य सृजन के प्राण।
छंद, वेद, ऋषि, देवता, करथें जग कल्याण।।
यति, गति, तुक, मात्रा, चरण, अनुशासन के बंद।
जौन सृजन ये होय सब, नाँव ओखरे छंद।।
सुग्घर गति सुर लय सधय, रख ले एखर ध्यान।
विषम विषम सम हा 'अमित', कल संयोजन प्रान।।
शब्द-शब्द ला छाँट के, विधिवत रखव जमाय।
बहुते बढ़िया लय बनय, सरी जगत मोहाय।।
सबो चरण मा देख गिन, एक बरोबर भार।
उही छंद ला जान तैं, सममात्रिक के सार।।
छंद शास्त्र बहुते गहिर, मिलय न एखर थाह।
बनय सिद्ध साधक अमित, जइसन जेखर चाह।।
गद्य कसौटी व्याकरण, काव्य कसौटी छंद।
अनुशासन बँधना सहित, उपजै अति आनंद।।
सजथे सुर लय साधना, छंद सृजन अनमोल।
अमित सनातन गेयता, फूटय सरगम बोल।।
मन के अँधियारी मिटय, देखत छंद अँजोर।
सूरुज निकलै चीर के, अमित घटा घनघोर।।
लिखना हे बड़ कीमती, झन तैं खरही गाँज।
सोच-समझ आखर बउर, पहिली अंतस माँज।।
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात~9200252055 - (27/04/21)
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