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बुधवार, 26 मई 2021

जानव जनऊला ~ (801-850)

801- वीर सिपाही सोय उठाय।
सुन के मोला जोश भराय।।
मार परै तब जगै परान।
बिन मारे हे मरे बिहान।।
-नँगाड़ा

802- बहुते हरु हँव मोला जान।
फेर गरू हँव येहू मान।।
दू झन बिन उठ नइ पाँव।
बने बुता के इनाम ताँव।।
-बड़ई

803- आगी खाथे, नहीं अघोर।
पीहू करथे नो हे मोर।।
हाथी जइसे ताकत जान।
शेर सहीं चुस्ती हे मान।।
-रेलइंजन

804- बिना पाँव के उड़ै उड़ान।
हाथी ले जादा बलवान।।
सरी रातदिन दँउड़ लगाय।
कभू थकय ना ये सुरताय।।
-बिजली

805- करिया हे पर नो हे साँप।
दाँत बिना डँसथे, तैं भाँप।।
ताकत देथे, नो हे देव।
नाँव जानथे तौने लेव।।
-अफीम

806- गेंद सहीं फरथे ये गोल।
ऊपर टोपी कटही खोल।।
पोंगा जइसे लमरी फूल।
मार मतौना जाथें झूल।।
धतूरा

807- पींयर-पींयर बड़ अनमोल।
देखत दुनिया जाथे डोल।।
गहना-गुरिया सुघर सुहाय।
एखर गुण ला जम्मों गाय।।
-सोन

808- चलते रहना एखर काम।
करै कभू नइ ये आराम।।
टिक-टिक एखर बोल सुनाय।
करय इशारा समय बताय।।
-घड़ी

809- लइकामन येला बड़ भाय।
नइ तो दाना-पानी पाय।।
पंछी जइसे ऊँच उड़ाय।
मुँह मा डोरी नाथ नथाय।।
-पतंग

810- सादा-सादा दिखथे खास।
जर के देथे सुघर सुवास।।
पूजा मा ये आवय काम।
कोन बताही एखर नाम।।
-कपूर

811- रिंगी-चिंगी एखर रंग।
दाँत हजारों एखर संग।।
नर नारी के आवय हाथ।
बगरे चुन्दी देवय गाँथ।।
कंघी

812- बारों महिना थोरे थार।
चउमासा मा बाढ़य धार।।
घर अँगना गंदा हो होय।
ध्यान रखै ना जौने कोय।।
-मोरी

813- पाना एखर करै कमाल।
करदै सबके हाथ निहाल।।
कूट-पीस के रंगत लाय।
लाली रचथे जभे सुखाय।।
-मेंहदी

814- खैर पेड़ के येहा छाल।
कुटका-कुटका रखैं उबाल।।
सबके मन ला बहुते भाय।।
जौन खाय मुँह लाली पाय।।
-कत्था

815- तीन सींग के देखव गाय।
तरिया भीतर तँउरे जाय।।
करिया सादा हावय जान।
फर जुड़हा गुणकारी मान।।
-सिंघाड़ा

816- हरियर-हरियर डारा पान।
नर नारी के हे मुस्कान।।
जेवन पाछू आवय काम।
लाल रचाथे मुँह, का नाम।।
-पान

817- रंग सोनहा पींयर मार।
उड़थे येहा पाँख पसार।।
बिच्छी जइसे नँगते झार।
कोन जीव हे जानव यार।।
-दतैया

818- कलजुग काली माता मान।
बात हवा ले करथे जान।।
पानी पीयै आगी खाय।
लोहा पटरी भगते जाय।।
रेलगाड़ी

819- नान-नान डबिया म भराय।
डूब-डाब ये करते जाय।।
राजा माँगय देके मोल।
मुँह ले नइ दन फूटय बोल।।
-आँखी

820- खाल्हे कोती करिया होय।
ऊपर आमा जइसे सोय।।
दिखथे ललहूँ बंदन रंग।
आवय फागुन के धर संग।।
-परसा

821- गज भर कपड़ा बारा पाट।
सात रंग के लटके टाट।।
सरलग एखर होवय पाठ।
गाँठ लगे तीने सौ साठ।।
-साल(कलैंडर)

822- एक महल दू राजा होय।
फौज फटाका इन्दर सोय।।
अपने पारी जब-जब आय।
मुँड़ी सिपाही के कटवाय।।
-शतरंज

823- शीशी बोतल रस भंडार।
रिंगी-चिंगी ये दमदार।।
एखर ले जे करथे प्यार।
जिनगी हा होवय बेकार।।
-दारू

824- रतिहाकुन करथे उजियार।
एखर बिन लागय अँधियार।।
सादा जुड़हा करय अँजोर।
दिन मा भइगे दाँत निपोर।।
-चन्दा

825- मन्दिर जेमा दसठन द्वार।
एक जीव एखर भरतार।।
बिना जीव के ये बेकार।
हाड़ माँस के रचना सार।।
-मनखे देंह

826- एक पेड़ बिन डारा पान।
फर झरथे बरसा कस जान।।
जौन जघा फर ये गिर आय।
तुरते वो गिल्ला हो जाय।।
-करा

827- छत मियाँर मा लटके जाय।
लइकामन ला बहुते भाय।।
संग सहेली सावन छाय।
अमरैया मा बाँधे आय।।
-झूलना

828- सोला रानी, मूँड़ा चार।
तीन आदमी मया दुलार।।
जीना मरना इँखरे हाथ।
सुन्ना सबके राहय माथ।।
-चौसर/पासा

829- पातर नारी सभा म आय।
एक सजन हा होंठ लगाय।।
छाती छेदा छेद बताय।
बोली मधुरस वाह कहाय।।
-बँसरी

830- एक पाँव के नारी देख।
पहिरे लहँगा घरी सरेख।।
ताने राहय आठों हाथ।
बरसा गरमी हमरे साथ।।
-छतरी

831- एक महल मा सबो अमात।
चवालीस राहय के जात।।
एखर मन के नारी चार।
एक्का चार म होंय सवार।।
-ताश

832- पाँच धातु के मंदिर सार।
रहिथें भीतर नर अउ नार।।
अपन हाथ ले करथें काम।
जस करनी के तस ईनाम।।
-प्राणी

833- चलते रहना एखर काम।
कभू कहाँ करथे आराम।।
सरी जगत के ये कल्याण।
छिन भर छोड़य, निकलै प्राण।।
-हवा/साँस

834- हरियर ले पींयर हो जाय।
जन-जन येला बहुते भाय।।
ऊपर भीतर फेंकय जान।
फर के राजा इही महान।।
-आमा

835- एक नगर पशु बत्तीस।
जेमा के राहँय नर बीस।।
जब मन होवय लड़ते जाय।
लहू घाव ना कखरो आय।।
-शतरंज

836- बिना बबा के नाती होय।
परे-परे भिथिया मा रोय।।
पानी गोबर बूड़ नहाय।
घर कुरिया के चमक बढ़ाय।।
-पोतनी

837- रहै महल घर अँगना द्वार।
ईंटा पखरा मिलै न यार।।
तरिया नँदिया सागर सार।
मिलै न एक्को पानी धार।।
-फोटू

838- खोल म खुसरे खतरा नार।
चमकै चमचम उज्जर धार।।
टेढ़ा-मेढ़ा चलथे चाल।
लहू रकत पीथे ये लाल।।
-तलवार

839- बिना मुँड़ी के हावय नार।
हवै भुजा दू एखर सार।।
चलौ-चलौ के करथे नेंग।
संग एक झन धरके रेंग।।
-डोली

840- कपड़ा-लत्ता नो हे थान।
सिलय-बिनय ना कोनो जान।।
राखय अपने देंह म डार।
छै-छै महिना फेंक उतार।।
-जोंखी

841- नान्हे लइका बड़ दमदार।
दाढ़ी मेछा हे भरमार।।
जब बजार मा येहा जाय।
हाथ हाथ मा झट बेंचाय।।
-नरियर

842- नारी दू एक्केठन पेट।
कभू होय ना नर ले भेट।।
काज इँखर बड़ अचरज ताय।
दूनों मिल लइका जनमाय।।
-सीप

843- आठ पंखड़ी के ये फूल।
मुँड़ ऊपर रहिथे ये झूल।।
गरमी बरसा लेथे थाम।
जाड़ समय नइ आवै काम।।
-छतरी

844- मुँड़ मा हरियर कलगी सोय।
हाथी दाँत बरोबर होय।।
आथे खाये के ये काम।
तुरत बतावौ का हे नाम।।
-मुरई

845- पानी ले रुखुवा उपजाय।
जेखर डारा नँगते छाय।।
जुड़हा एखर छँइहा होय।
बइठ सकै ना खाल्हे कोय।।
-पानी के फव्वारा

846- मुँड़ मा बइठे रानी दोय।
आवत-जावत पानी खोय।।
एखर बिन ये जग अँधियार।
नाँव काय हे करव विचार।।
-आँखी

847- रहिथे येहा हमरे संग।
फेर अलग हे एखर ढंग।।
कहाँ गढ़य येला लोहार।
वार करै जइसे हथियार।।
-नख

848- हाड़ा-गोड़ा नइ हे माँस।
रहिथे पर अँगठी मा फाँस।।
इही सुरक्षित हवय उपाय।
आगी ले ये डरते जाय।।
-दस्ताना

849- आवत हँव कहिके बतलाय।
दुनिया भर पहिली चमकाय।।
आवय तब बहुते धमकाय।।
आगी जँउहर धर के आय।।
-गाज

850- गुदा फोकला खाय सिराय।
तभो गुठलु बड़ गुरतुर भाय।।
घेरी-बेरी मुँह मा बोज।
चुहक-चुहक के फेंकँय सोज।।
-आमा गोही
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़...©®

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