पढ़ई-लिखई
आखर-आखर ज्ञान के, भरव रोज भंडार।
चिटिक पढ़ाई नित करव, मिलही मान अपार।।
पढ़ई-लिखई ला अमित, कठिन तपस्या मान।
जइसे तपसी मन बनय, वइसे पा वरदान।।
हावय जेखर चेत हा, पढ़ना-लिखना कोत।
अंतस मा ओखर बरय, सदा ज्ञान के जोत।।
जग अँधियारी मेट दय, दीया के अंजोर।
मन अँधियारी झार दय, ज्ञान दीप झकझोर।।
पढ़ई-लिखई सार हे, धन दौलत बेकार।
खरचा जतके होत हे, वतके हे बढ़वार।।
चोरी करे न चोरहा, बाँटै ना बँटवार।
अपने विद्या ज्ञान ले, जिनगी हे उजियार।।
अपने हक ला पाय बर, खोलव ज्ञान कपाट।
अप्पढ़ ला सब कूटथें, जइसे धोबी घाट।।
रोजी धंधा अउ बुता, भुजबल हे आधार।
पढ़ना-लिखना ज्ञान मा, अंतस शक्ति अपार।।
पढ़े-लिखे मनखे इहाँ, अपने भाग्य बनाय।
मूरुख मनखे हा अमित, माथा रहै नवाय।।
पढ़ई-लिखई हा अमित, खूब सोनहा घाम।
धन दोगानी संग मा, होथे बड़का नाम।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055....©®
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें