मया पिरित
मया पिरित करले तहूँ, जिनगी मा इक बार।
कइसे होथे जान ले, मन मा मया बुखार।।
कोनो कहिथे ये नशा, कोनो कहिथे रोग।
जेला होथे प्रेम हा, ओखर बाढ़य सोग।।
मया पिरित के नता, बिन जोड़े जुड़ जाय।
बिन डोरी के बंधना, कोनो टोर न पाय।।
मया पिरित के बात हा, सबके मन नइ भाय।
देखत-देखत जर मरँय, अपने अपन भुँजाय।।
लेन-देन अउ फायदा, अइसन तो बैपार।
देखय घाटा ना नफा, उही असल हे प्यार।।
सबले बढ़के ये नता, जेला कहिथें प्यार।
एक डहर घर बार हे, एक पार लगवार।।
मया पिरित बड़का कुआँ, भीतर ले अँधियार।
जौने बूड़य जा तरी, ओखर बेड़ापार।।
मया पिरित माँगय मया, त्याग समर्पन भाव।
जेखर मन मा वासना, करथे मन बहलाव।।
मया पिरित हावय कहाँ, देखव आज समाज।
तन के लोभी बन फिरँय, आवय एक न लाज।।
मन तो देखय भाव ला, काखर मन मा काय।
दन दोगानी छोड़ के, मन कँगला बर आय।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~9200252055...©®
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