यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 9 मई 2021

दुलरवा दोहा ~ नशामुक्ति

नशा
माखुर गुटका मा बुड़ै, देखव आज समाज।
मरनी अपने हाथ मा, कइसन उलट रिवाज।।

नशा नाश के हे जरी, उजरय घर परिवार।
जौन नशा पत्ती करय, जनम होय बेकार।।

चिटिक मजा के फेर मा, जिनगी करँय खुआर।
काम बुता करथें कहाँ, गुलछर्रा गरियार।।

दारू गाँजा के चुलुक, जिनगी हे बरबाद।
धन दोगानी दय गँवा, माटी मा मरजाद।।

पिये खाय मँदहा गिरै, नाली हाट बजार।
लाँघन भूखन घर मरै, देवय कोन उधार।।

तन ला करथे खोखला, मन होथे बीमार।
बनथें लबरा चोरहा, दुनों हाथ लाचार।।

कभू नशा तुम झन करव, बाढ़य बहुत बवाल।
अरझे होही मन कहूँ, फेंकव तुरत निकाल।।

झगरा ठेनी रातदिन, बेंच खाय सम्मान।
देख नशा के संग मा, मनुज बनय शैतान।।

कंचन जइसे देंह ला, राखव सुघर सँभाल।
करव नशा झन जी कभू, रहव सदा खुशहाल।।

जौन नशा करथे इहाँ, झट्टे धरथे रोग।
दुख पीरा ला खुद बिसा, कोन मरै तब सोग।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055....©®

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चंद्रयान अभिमान

चंद्रयान  ले  नवा  बिहान,  हमर तिरंगा, बाढ़य शान। रोवर चलही दिन अउ रात, बने-बने बनही  हर  बात, दुनिया होगे अचरिज आज, भारत मुँड़़ अब सजगे ताज, ...