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रविवार, 16 मई 2021

दुलरवा दोहा ~ फुतका/धुर्रा

फुतका/धुर्रा
फुतका माथा मा सजै, चंदन बंदन जान।
देशभक्ति अंतस खिलै, भुँइया हमर महान।।

माटी फुतका खेल के, होवय सबो जवान।
बड़ भारी महिमा हवय, कतका करँव बखान।।

तरपौंरी मा रौंद के, जाथच तैं हा भूल।
पीरा देवय घात तब, आँखी परके धूल।।

फुतका उड़थे जब अमित, बनके हवा गरेर।
फूँक उड़ावै जौन ला, करय उही अंधेर।।

धुर्रा माटी संग मा, बनय जीव आधार।
जिनगी के हर ठाँव मा, मानव बस उपकार।।

मया पिरित के गाँव मा, आवव खेलन खेल।
सुग्घर घरघुँदिया बना, फुतका मा तैं खेल।।

माटी मोती मोल हे, धुर्रा चाँदी सोन।
जनमभूमि के धूल ला, भला भुलाथे कोन।।

मोर पाँव धुर्रा लगय, लेवँव तुरते धोय।
कहूँ माथ येहा चढ़य, मोला गरब होय।।

माटी फुतका के अमित, महिमा बहुते होय।
जौन रहै अलगे इहाँ, अपन चिन्हारी खोय।।

धुर्रा गर्दा झाड़ लै, चमकै थोरिक रंग।
मइल भरे मन मा नँगत, रहि झन अइसन संग।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055...©®

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