दंतेश्वरी दंतेवाड़ा
दंतेवाड़ा के तीर मा, जंगल ऊँच पहार।
जय दाई दंतेश्वरी, तोर सजे दरबार।।
देवी दाई श्री सती, इहाँ गिरे हे दाँत।
एखर सेती ये जघा, दंतेश्वरी कहात।।
दंतकथा प्रचलित हवय, राजा अन्नमदेव।
देवी दाई भक्त इन, रखय न मन दुरभेव।।
हार मुगलमन ले मिलिस, वन मा भटकै पोठ।
तोला मिलही राज हा, राजा देवी गोठ।।
बिन लहुटे तै रेंगबे, आगू कोत निहार।
पाछू मुड़ के देखबे, खतम तोर विस्तार।।
पाछू मा देवी चलय, घुँघरू बजै सुनात।
राजा आगू बड़ बढ़य, सुरता राखत बात।।
राजिम संगम तीर मा, रेत गड़य जब पाँव।
घुँघरू के आवाज हा, कइसे कहाँ सुनाय।।
देख परिस राजा लहुट, देवी बात भुलात।
गलती होगे तोर ले, देवी दय समझात।।
देवी देइस वस्त्र ला, ढाँकत भुँइया नाप।
जतका कन तैं ढाँकबे, वतके ला तैं खाप।।
डँकनी-शँखिनी दू नदी, होवय जिहाँ मिलान।
कहिन मातु दंतेश्वरी, मोला उँहचे जान।।
मंदिर माता के सुघर, संगम तीर बनाय।
धोती पहिरै तब दरश, राजा रीत चलाय।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055...©®
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