हमर देश के सेना ~ आल्हा छंद
हमर देश के सेना देखव, भारी बलकर बल के खान।
सीमा के रक्छा खातिर इन, धरे हाथ मा अपने प्रान।।
बैरी तुम झन सिधवा समझव, हमर सेनानी यम के काल।
जीभ सुरर के घेंच पूजथें, भरथें भूँसा निछथें खाल।।
घाम-जाड़ अउ बरसत पानी, सीमा के इन करँय सरेख।
थरथर काँपय दुश्मन लिज्झड़, तरफर तारारोसी देख।।
खरतरिहा खरखर बड़ खर्रा, येमन बैरी बर खखुवाँय।
फरफर फरकय भुजबल बहुते, देखत मा दुश्मन भकवाँय।।
भारत माता के जय बोलँय, सँघरा जइसे शेर दहाड़।
सुनके दुश्मन पल्ला भागँय, देही नइ तो भुजा उखाड़।।
खाँध जोर जब सेना चलथे, लागय जइसे हवा-गरेर।
सउँहत दिखथे काल बरोबर, लगथें कोनो भँवर मछेर।।
बरसय जब इन बैरी उप्पर, धरके गोला अउ बंदूक।
पानी के बूड़े नइ बाचँय, देथें झट जर सुद्धा फूँक।।
ठाँव-ठाँव मा बाधा बइठे, जंगल-झाड़ी, नदी-पहाड़।
डहर कठिन नइ काँही जानय, कोनो नइ कर सकँय बिगाड़।।
सरदी-गरमी, बरसत बादर, रक्षा मा इन राहँय ठाढ़।
देख-देख के धजा तिरंगा, लहू-पछीना होवँय गाढ़।।
भारत भुँइया प्रान अधारा, सबले बड़के मानँय देस।
गलत करइया मनखे ला इन, भरभर भुर्री कस दँय लेस।।
कायर-कपटी, खोड़िलमन ला, भेजँय इन यमलोक सकेल।
जौनै देखँत नजर गड़ा के, ओखर आँखी बाँटी खेल।।
भारत के इन बघवा बेटा, धरथे गजबे मन मा धीर।
बरजे ले नइ मानय बैरी, तब देवँय धर ठाढ़े चीर।।
हितवा खातिर हितवा-सिधवा, बैरी बर हें डोमी साँप।
महाकाल कस काल बरोबर, देखय बैरी पोटा काँप।।
भारत के सैनिकमन सिरतों, हावँय जब्बर वीर सपूत।
महतारी के सेवा खातिर, जान लड़ावँय 'अमित' अकूत।।
कन्हैया साहू 'अमित'✍
भाटापारा छत्तीसगढ़ ©®
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