अवतार छंद ~ हमर गाँव के हाल
हमर गाँव बिगड़े हवय, दँव दोष कोन ला।
लेगे लबरा लूट के, सुमत के सोन ला।।
बाती बाता बात मा, मउका धरे खड़ें।
दाई भाई बाप ले, जउँहर भिड़े लड़ें।।
बीड़ी गाँजा दारु मा, माते गिरे परे।
खेलत सट्टा अउ जुआ, गहना सरी धरे।।
चुगली-चारी बस बुता, दिन-रात हें जुड़े।
बइठाँगुर बन बहिरहा, बकबक सबो बुड़े।।
भाँठा परिया मरघटी, कहाँ मइदान हे।
खोर-गली अब सोलखी, कहाँ दइहान हे।
बेंवारस कस गायगरु, फिरँय चारों मुड़ा।
नाँगर-जाँगर नइ दिखय, माढ़े परे जुड़ा।।
गजब फसल के लोभ मा, रसायन के दवा।
नकली खातू बीजहा, बिखहर भरे हवा।।
बदले-बदले ढ़ंग ले, सँचरगे रोग हा।
देखँव जब-जब गाँव ला, बढ़य बस सोग हा।।
कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़
रचना~23/08/2020
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