हाना-1
उल्टा पुल्टा हाल अब, उल्टा हे संसार।
कइसे के दिन आय हे, मूँड़ मुँड़ै लोहार।।
ठलहा बनिया का करय, कइसे समय पहाय।
ए कोठी के धान ला, ओ कोठी म रिताय।।
गदहा के ना सुर सधय, बनिया न सखा होय।
बगुला सधुवा का बनय, वेश्या चाल न खोय।।
अपने करनी तब दिखय, जब मरनी के बेर।
तब पछतावय होत का, परे काल के फेर।।
अपने जोगी जोगड़ा, सिद्ध भये हे आन।
घर के कुकरी दार कस, जानव मरे बिहान।।
अँड़हा के लिखना अमित, रड़हे डड़हा ताय।
कारी आखर एक हे, कहाँ बात पतियाय।।
बइगा घर लइका नहीं, बढ़ई घर नइ खाट।
अइसन विद्या काय के, खन के खँचवा पाट।।
शक्ति जोग के हे नहीं, आँखी लगे भभूत।
जाँगर एको नइ चलय, करते बात अकूत।।
तेल फूल लइका बढ़ै, पानी बाढ़ै धान।
खानपान ले हे सगा, बाढ़ै करम किसान।।
दुरिहा खेती अउ करज, लकठा बैरी बास।
रुखुवा नँदिया तीर के, खच्चित होय विनास।।
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हाना-2
चारी चुगरी जे करय, खाय तौन हा लात।
तनतन जे भूती करय, खाय तौन हा भात।।
देखा-सीखा देख के, आथे अलहन जान।
छूट परिस हे प्रान हा, खाइस शौख म पान।।
जौन बहुरिया नकचढ़ी, नखरा बड़ देखाय।
चिंगरी मछरी झोर दे, कहिके रार मचाय।।
करम कमाई हाथ मा, जाँगर बाँह भरोस।
महिनत के फर मीठ हे, खा ले तीन परोस।।
सोच समझ बूता करव, गोठ करव कर जोर।
अपने हिस्सा बाँटलव, रोटी खावव टोर।।
लालच के फर हे करू, कइसे अमित बताय।
लगे भँइस के लोभ हे, छेरी दुहे न जाय।।
भात खाय करछुल नहीं, फेर धरे तलवार।
डींग मार ले तैं बने, करके सोंच विचार।।
दूध दुहै चलनी धरे, भाग ल दोस बताय।
अपन करम जानय नहीं, बिरथा जनम खपाय।।
सबो कुकुर गंगा चलय, पतरी चाँटय कोन।
मुसुवा बर खइता हवय, कतको पावय सोन।।
कतको सर जाथे तभो, काम आय सइगोन।
भाव कभू उतरय नहीं, जइसे चाँदी सोन।।
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हाना-3
तेल सिरागे घाव बर, घर मा नइ हे भाँग।
कोठा मा बारय दिया, पाछू मेछा टाँग।।
अहिरा पिंगरा बड़ पढ़ै, तभो हाल बेहाल।
चोह कभू छूटय नहीं, चलय भूत के चाल।।
बाप घींव खाये कभू, मोर हाथ ला देख।
नइ पतियावच ता तहूँ, थोरिक सूँघ सरेख।।
समय आय पहिली करय, कइसे जतन हियाव।
छट्टी बर दै नेवता, होये नहीं बिहाव।।
हपटे बन के पाखरा, फोरे घर के सील।
कुकुर कुदावय देख के, लेगय चियाँ ल चील।।
का ओढ़र ला खोजथे, जेमा बइठे भाय।
का आगी घर बारना, छेना धरके आय।।
काम कमाई गोठ मा, पागी होवय ढील।
खात खवाई के समय, आगू कूढ़ा लील।।
अपन काम ले काम रख, बाँकी सब बेकार।
भूँ-भूँ भूँकत हे कुकुर, हाथी चलै बजार।।
कोरा मा लइका अमित, गाँव बीच गोहार।
माथा मा चश्मा टँगे, खोजे जाय बजार।।
नींदे कोड़े खेत हा, दिखथे सुग्घर सार।
नोनी गाँथे मूँड ला, चुकचुक ले सिंगार।।
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हाना-04
जानय खेती खार ला, उसी असल हुसियार।
जौन चेतलग नित रहय, बोवै वो कुसियार।।
संझा बेरा के झड़ी, बरसय जी लघिहात।
बिहना के झगरा अमित, पूरय दिन अउ रात।।
जौन चीज हा नइ मिलय, ओखर का के गोठ।
दहरा के मछरी अमित, हावय नँगते मोठ।।
काज बड़े करना कहूँ, देख-ताक झन रोय।
कहाँ लुवाठी तरिया तिपे, कुनकुन तक नइ होय।।
बड़े बाप के छोकरी, घी मा खिचरी खाय।
भोला के संगत परे, बिन-बिन छेना लाय।।
अपने बेटा कोन हा, कहय लेड़वा खीक।
रोट गहूँ के टेड़गा, तभो लागथे नीक।।
जौन बिहनिया जागथे, खच्चित रोज नहाय।
ओला देखत बैद हा, हाथ मलै पछताय।।
कहिथे सिरतों गोठ ला, ज्ञानी संत सुजान।
जे घर नारी बुध चलय, जानव मरे बिहान।।
पुस्तक पोथी बड़ पढे़, पाछू हे बेहाल।
मन के भीतर मैल हे, कीरा परगे चाल।।
जेला आवै गोठ गा, ओ अँकरी बेचाय।
जानै नइ जे गोठ ला, ओखर चना घुनाय।।
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हाना-05
जाँगर जेखर हे सरे, बाहिर खाय कमाय।
खेती बर बनिहार रख, खइता जीव कहाय।।
संग गहूँ के राई मिला, चतुरा बोनी जान।
अपन जात शादी रचा, उत्तम कहय सियान।।
रहना हे ससुरार ता, राहव दिन दू चार।
जे मानय ये बात ला, ओखर सुख हे सार।।
जौने हा समझै नहीं, वोला का समझाय।
आगू एखर बिन बजै, भँइस खड़े पगुराय।।
सिधवा संगे सोज मा, बनथे काँँही बात।
बात जौन मानय नहीं, ओखर खातिर लात।।
मनखे जौने कोढ़िया, खाय पेट भर धास।
करय काम जौने इहाँ, ओही परै उपास।।
कभू भरोसा झन करव, परदेसी के संग।
थोरिक मा जाथे उतर, जइसे हरदी रंग।।
पानी बदलै कोस मा, चार कोस मा बोल।
बोली मा परथे फरक, हावय दुनिया गोल।।
हाथ धरे बइठय नहीं, करथे काम किसान।
समय संग अघवाय जे, ओही चतुर सुजान।।
खेत-खार देखय नहीं, ओखर खेती नास।
धन दोगानी बाँचय कहाँ, खेलय जौने तास।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055 - (29/04/21)
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