05~गाँव गँवई
पैडगरी धरसा अमित, मोर गाँव के राह।
मीत मितानी मन मया, कइसे पाबे थाह।।
जुड़वासा हे घर सहीं, बर पीपर के छाँव।
तरिया नँदिया अउ कुआँ, मया पिरित के ठाँव।।
बाप बबा सँघरा रहँय, संग बहू अउ सास।
एकमई सब घसिटहा, इहाँ नता हे खास।।
नाचा करमा ददरिया, संग मया के खाप।
घसेलहा घर-घर नता, कखरो ले झन नाप।।
पारा बस्ती मिल रहँय, गुजर-बसर दिन रात।
चटनी बासी गोंदली, खावँय ताते तात।।
गोठ गुड़ी के गोठिया, गुँइया तैं गुड़ियार।
पाँच पंच के फैसला, करँय सबो स्वीकार।।
बइठे ठाकुर देवता, सुग्घर तरिया तीर।
करथे रक्षा गाँव के, होके बड़ गंभीर।।
संझाकुन दीया बरय, तुलसी चौरा साँट।
दया-मया के थाप ला, देवय सब ला बाँट।।
बारी बखरी कोलकी, गँवई के पहिचान।
नान्हे अँगना द्वार मा, हावय मया खदान।।
गोबर पानी लीप के, सुग्घर चौंक पुराय।
खोर-गली चुकचुक दिखै, देखत मन मोहाय।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात~9200252055 - (29/04/21)
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