004- महतारी
मन मंदिर ममता मया, महतारी मा मान।
कहाँ खोजबे देवता, दाई खुद भगवान।।
महतारी ममता मया, जग मा हवय महान।
बिन महतारी के अमित, जिनगी नरक समान।।
जिनगी जउँहर घाम हे, दाई जुड़हा छाँव।
ये कोरा मा हे सरग, छोड़ कहाँ मैं जाँव।।
दुख पीरा ला तैं सहे, हम ला करे तियार।
जिनगी चुकता नइ सकँव, दाई के उपकार।।
महतारी के हे चरण, सबले पबरित धाम।
बन जा सेवक मातु के, होही जग मा नाम।।
मोर जनम तोरे कृपा, साँसा तोर उधार।
भवसागर डोंगा फँसे, दाई खेवनहार।।
महतारी अँचरा बसे, तीन लोक भगवान।
सेवा करले तैं बने, पाबे निक वरदान।।
महतारी ममता अमित, जग मा सबले सार।
बिन दाई के ये जनम, जिनगी होय खुआर।।
होवँव कतको मैं बड़े, मोला लइका जान।
तोर चरण के चाकरी, पाये हँव मैं ज्ञान।।
कोनो पूजा पाठ ता, कोनो रहय उपास।
मिलय पुण्य दाई चरण, पूरन होवय आस।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात~9200252055 - (28/04/21)
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