501- चाय साग मा स्वाद बढ़ाय।
भुँइया भीतर येला पाय।।
औखद येहा बड़ गुणकार।
चुरपुरहा भुरुवा रसदार।।
-आदा
502- पींयर-पींयर एखर गाँव।
होवय येहा बहुते टाँठ।।
साग-दार के रंग बढ़ाय।
बड़ गुणकारी रोग भगाय।।
-हरदी
503- सलगा डुबकी कढ़ी कहाय।
उरिद दार ला फेंट बनाय।।
रतिहा भर के भींजे दार।
डबकत चुरथे अमसुर झार।।
-बफौरी
504- गुरहा चीला इही कहाय।
गुड़ पिसान अउ गहूँ मिलाय।।
सुग्घर एखर भोग चढ़ाय।
नवाखाय मा सबो बनाय।।
-बोबरा
505- दूध डार चाँउर डबकाय।
बहुत स्वाद चाँटत सब खाय।।
लौंग लायची काजू डार।
खावँय मनखे पलथी मार।।
-तसमई
506- एखर हे अलगे पहिचान।
फोरय लाई डारय धान।।
कठई रस के पाग म डार।
मेला-मड़ई मा भरमार।।
-ओखरा
507- नान्हें पंखा हाथ घुमाय।
बाँस चीर कँड़रा ह बनाय।।
एती-ओती धर के जाव।
लागै गरमी हाथ हलाव।।
-बिजना
508- बनै बाँस के सींका सार।
होय गोलवा चाकर मार।।
बर बिहाव मा भारी माँग।
बरी सुखो तैं छानी टाँग।।
-पर्रा
509- बनै बाँस के सींका डार।
थोरिक चाकर रहै दिवार।।
धान-गहूँ चाँउर सब छीन।
गोंटी माटी येमा बीन।।
-सूपा
510- गोल टोकरी ढक्कन संग।
बनै बाँस के सींका रंग।।
बर बिहाव मा पेटी जान।
सोंच समझ झट पहिचान।
-झाँपी
511- झलझलहा टुकनी तैं मान।
बनै बाँस सींका ला तान।।
धोवय कोदो कनकी दार।
निकलै कचरा बाहिर पार।।
-झेंझरी
512- कचरा काड़ी जोर जमाय।
मुँड़ मा बोहे घुरुवा जाय।।
बाँस खपच्ची ले तैयार।
गोल गहिर चाकर ये सार।।
-झँउहा
513- बनै बाँस के सींका सीक।
गिल्ला जीनिस सेंकय नीक।।
बाँस खपच्ची चद्दर जान।
आगी ऊपर भूँज समान।
-झाँझी
514- दाई-माई के चिन्हार।
पाँच-हाथ के लत्ता सार।।
अँचरा ओली येमा जान।
संगी तुरते तैं पहिचान।।
-लुगरा
515- कनिहा खाल्हे पहिरे जाय।
गोला घाघरा जइसे ताय।।
सिलवाथें सब घेरादार।
अंगरखा हे नारा डार।।
-साया
516- जइसे लुगरा तइसे रंग।
कपड़ा मिलथे लुगरा संग।
छाती ढाँकय लत्ता सार।
लुगरा के ये जोड़ीदार।।
-पोलखा
517-फूल मोंगरा रहै गुँथाय।
महर-महर बहुते ममहाय।।
बेनी खोपा मा खोंचाय।
अपने जोड़ी खूब लुहाय।।
-गजरा
518-कोर गाँथ बेनी लटकाय।
रिंगी-चिंगी ये लपटाय।।
होथे पातर चाकर लाम।
बेनी संगे जुड़थे नाम।।
-फीता
519-पातर पट्टी लोहा टीन।
आनी-बानी हे रंगीन।।
चपकै चुन्दी राखय दाब।
वोमा खोंचे एक गुलाब।।
-किलिप
520- बगरे चुन्दी दाँत दबाय।
खुल्ला बेनी बड़ सुहाय।।
प्लास्टिक लड़की बनथे जान।
दाँता रहिथे सिरतों मान।।
-बक्कल
521- टिकली जइसे रहिथे गोल।
गिल्ला जइसे रंगे घोल।।
खाली माथा सुघर सजाय।
रिंगी-चिंगी चिन्ह बनाय।।
-बिन्दी
522- लाली नारंगी हे रंग।
भरै माँग माथा के संग।।
सुक्खा गिल्ला मिलथे जान।
हरै सुहागिन के पहिचान।।
-सेंदूर
523- लौंग सोनहा नाक म डार।
फबभे येहा चुक चकदार।।
फँसय पेंच हा खाल्हे जाय।
गहना छल्ला नाक कहाय।।
-फुल्ली
524- पहिरै येला डेरी पार।
फभै नाक बहुते नथदार।
रिंग गोल ये पातर जान।
कहै नाक के लटकन मान।।
-नथली
525- करणफूल येला तैं जान।
सोना चाँची येला मान।।
चटके रहिथे येहा कान।।
कान सवाँगा हे पहिचान।।
-खिनवा
526- रहिथे लटकत येहा कान।
गजबे हावय एखर शान।।
दिखै सोनहा झूलनदार।
छोट-बड़े एखर आकार।।
-झुमका
527- रिंग गोलवा दिखथे सार।
फभै कान मा लटकनदार।।
बाली एखर जोड़ीदार।।
नाँव बतावव सोऔच विचार।।
-बाला
528- चाँदी के सिक्का तैं मान।
गुँथें रहै दस बारा जान।
करिया रेशम संगे पोह।
नारी गर मा पहिरैं चोह।।
-रुपिया
529- सबले मँहगी गर के हार।
संग लाख सोना ला डार।।
गोल-गोल माला कस मान।
बढ़ै घेंच के बहुते शान।।
-सुर्रा
530- हरै सोनहा गर के हार।
लगै छोटका रुपिया सार।।
लेकिन मँहगी येला जान।
गजबे फभथे सिरतों मान।।
-पुतरी
531- चाँदी माला निंधा सार।
बहुते भारी गर के हार।।
बूढ़ी दाई फभथे घात।
बर बिहाव मा होथे बात।।
-सूँता
532- फभै बाँह मा सुग्घर जान।
नाग साँप जइसे पहिचान।।
चाँदी के हे गहना सार।।
नाँव बतावव तुरते यार।।
-पहुँची
533- होय सोनहा चाँदी सार।
गोल रोंठहा पहिरै मार।।
फभै कलाई बहुते जान।
काय हरै ये झट पहिचान।।
-कड़ा
534- चाँदी गहना नोंकीदार।
चूरी संगे पहिरै डार।।
कंगन जइसे येला जान।
सजै कलाई, तैं पहिचान।।
-ककनी
535- कंगन जइसे येला मान।
हाथ कलाई पहिरै जान।
चाँदी के ये गहना सार।।
अँइठे राहय दूनों पार।।
-अँइठी
536- सोना चाँदी पिटवा मान।
पातर सादा चूरी जान।।
पहिरै जादा खाली हाथ।
जेखर सुन्ना राहय माथ।।
-पाटला
537- कनिहा के हे गहना खास।
रहिथे सब ला एखर आस।।
चाँदी के पहिरन षबो सधाय।
कनिहा मा धन बँधे कहाय।।
-करधन
538- सजै पाँव के अँगरी मान।
चाँदी के गहना हे जान।।
एखर होथे तभे हियाव।
होवय नोनी जभे बिहाव।।
-बिछिया
539- बिछिया जइसे एखर ढंग।
चाँदी उज्जर एखर रंग।।
पहिर पाँव के अँगरी डार।
सोज्झे सादा चाँदी तार।।
-चुटकी
540- खुनखुन बाजै, पहिरै गोड़।
नोनीमन बर हे बेजोड़।।
चाँदी के गहना तैं मान।
बाजत घुँघरू एखर जान।।
-पैजन
541- सबले बढिया सबले सार।
फभै पाँव हा जोरेदार।।
पातर-चाकर पहिरै जाय।
चाँदी गहना बहुते भाय।।
-साँटी
542- पैरी साँटी जइसे जान।
अलगे रहिथे एखर शान।
फिट बइठै ये दूनों पाँव।
चाँदी गहना, नाँव बताँव।।
-लच्छा
543- पाँव म पहिरे जाथे जान।
बड़ गरु गहना येला मान।।
भले पाँव जावय छोलाय।।
बड़हर अपने आप बताय।।
-टोंड़ा
544- कनिहा मा हे लटकाय।
चाँदी के गहना ये आय।।
संग कुची हा खोंचाय।
सबके मन ला येहा भाय।।
-कुचीखोंचनी
545- चाँदी सोना जानव सार।
पहिरै अँगरी मा ये डार।
कोनो रहिथें नँग जड़वाय।
कोनो जोंही नाँव लिखाय।।
-मुँदरी
546- चाँदी सोना गहना ताय।
मुँदरी जइसे बहुते भाय।
रहिथे सादा सोज सपाट।
सुघराई मा नइ हे काट।।
-छल्ला
547- घोरै लाली लाली रंग।
भावै अपने अँगरी संग।
धीर लगा के पाँव रचाय।
तरपौरी हिलु देख मड़ाय।।
-माहुर
548- शीशी मा ये घोरे आय।
माहुर जइसे पाँव रचाय।
लागै येहा पोनी संग।
सजै गोड़ हा लाली रंग।
-आलता
549- अजर-अमर गहना कहलाय।
सरी देंह येला गोदाय।।
करिया हरियर एखर रंग।
चिन्हा जावय मरनी संग।।
-गोदना
550- कुटका कपड़ा के हे सार।
धरथें बबुआ खीसा डार।।
चार कोनिया हे पहिचान।
मुँहु पोछव अउ बाँधव कान।।
-उरमाल
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़....©®
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