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बुधवार, 12 मई 2021

जानव जनऊला ~ (551-600)

551- पहिरैं सादा सार लिबास।
लत्ता पूजा पाठ म खास।।
अलग-अलग पहिरे के ढंग।
रहिथे उज्जर सादा रंग।।
-धोती

552- छोटे धोती येला जान।
रहै खाँध मा बइठे मान।।
आवय पोंछे के ये काम।
कान बाँध जब होवय घाम।।
-पटका

553- बिन अस्तिन के कुरता जान।
सोज्झे सादा हे पहिचान।।
काम बुता मा पहिरे जाय।
बड़ अराम एखर ले पाय।।
-बंडी

554- अंगरखा ये काट सिलाय।
पीठ-पेट छाती तोपाय।।
अस्तिन खीसा बाँही खास।
राहय येहा सबके पास।।
-कुरता

555-मुँड़ मा ये बइठे जाय।
जाड़ घाम ले मुँड़ी बचाय।
फेशन मा ये बहुते भाय।
संगी बोलव काय कहाय।।
-टोपी

556- बनथे कोनो समय विशेष।
पहिरै जम्मों उँचहा भेष।।
कुरता ऊपर जँचथे शान।
बड़हर के हे ये पहिचान।।
-कोट

557- दुनों गोड़ ला देवँय डार।
दू मोरी कस लत्ता सार।
कनिहा खाल्हे पहिरे जाय।
नारा बाँधय तभे कसाय।।
-पैजामा

558- नवा जमाना लत्ता जान।
पैजामा कस येला मान।।
नारा बदला चैन लगाय।
अपने फेशन मा रंगाय।।
-पेंट

559- लामी लामा फेटा डार।
मुँड़ के ये हे रखवार।।
रिंगी-चिंगी हे पहिचान।
मनखे के ये होथे मान।।
-पागा

560- आँखी रक्षा एखर भार।
काँच फारबर प्लास्टिक सार।
फुतका कचरा घाम बचाय।
जौने येला नाक बिठाय।।
-चश्मा

561- कनिहा पट्टी इही कहाय।
पेंट कसे मा रहै सहाय।।
रेगजीन चमड़ा पहिचान।
पेंट संग मा बाढ़य शान।।
-बेल्ट

562- बढ़े जब हमरो बड़ ठाठ।
नवा-नवा घर पूजा पाठ।।
चाँउर पिसान हाथ डुबाय।
घर भिथिया मा छाप बनाय।।
-हाँथा

563- ऊँच पेड़ के फर ये जान।
भुरुवा पींयर हे पहिचान।।
गोल लाम फर डाँड़ी पाँच।
बड़का औखद,खाले खाँच।।
-हर्रा

564- हर्रा के हे संगत जान।
होथे फर अण्डा कस मान।।
फर के छाली आथे काम।
चलव बताओ एखर नाम।।
-बहेरा

565- साग खाय खातिर ये आय।
रहिथे चाकर पी ले चाय।।
चीनी माटी मलिया मान।
रिंगी-चिंगी सुग्घर जान।।
-सासर

566- रहिथे लकड़ी डाँड़ी सार।
खाल्हे चकरी हे छै चार।।
दार मथे के आवय काम।।
रँधनी घर मा करय अराम।।
-दरघोटनी

567- पीतल काँसा तांबा सार।
दूध-दही पानी ला डार।।
छोट गोलवा मुँहु देखाय।
पेंदी बिन पेंदी के आय।।
-लोटा

568- छोट कटोरी येला मान।
होय गोलवा चाकर जान।।
ताँबा पीतल माटी सार।
साग-दार ला देवय डार।।
-मलिया

569- गगरी मरकी येला मान।
बनथे पीतल तेला जान।।
पनिहारिन पानी भर लाय।
सुग्घर सबके प्यास बुताय।।
-हँउला

570- पीतल हँउली बड़का होय।
बोह सकै ना येला कोय।।
धन दोगानी मानय सार।
भरै रहै बड़ चाँउर दार।।
-हंडा

571- पखरा के कुटका आय।
टाँच खसर्रा पोठ बनाय।
पीस-पीस येमा सब खाय।
देशी मिक्सी इही कहाय।।
-सील

572- सील संग एखर पहिचान।
लागय जइसे बदे मितान।।
एखर बिन ना एक पिसाय।
लाम गोलवा पखरा ताय।।
-लोढ़हा

573- मंजूर पाँख गुँथ पहिराय।
राउत भइया बछरू गाय।।
सोहय सुग्घर मन ला भाय।
अपन मवेशी अलग चिन्हाय।।
-सोहई

574- झीन बाँस प्लास्टिक ह गुँथाय
चाकर पातर लाम बिछाय।।
रिंगी-चिंगी आथे आज।
मान बिछावन नइ हे लाज।।
-सरकी

575- ले पिसान ला देवँय सान।
गोल-गोल गिल्ला ला चान।
इही गोल रोटी बेलाय।
संगी बोलव काय कहाय।।
-लोई

576- दाई दुहना दूध जमाय।
थोरिक जामन देत मिलाय।
ले सकेल के मही बिलोय।
तभे इही हा सकला होय।।
-लेवना

577- कूट पीस अमली ला लान।
चुरपुर मिरचा नून मिलान।।
अमसुरहा बड़ चाँटन खान।
झन कहिहौ नइ नाँव बतान।।
-लाटा

578- घर कुरिया के ऊपर ताय।
कमचिल खप्पर बिकट छवाय।।
सावन के पहिली लहुटाँय।
एखर खाल्हे दिन पहुवाँय।।
-छानी

579- ईंटा पखरा माटी सार।
घर कुरिया के ये आधार।
छानी ला ये लेवय थाम।
छेंका करना एखर काम।।
-भिथिया

580- घर कुरिया मा रहै दिवार।
जेला भिथिया कहिथन यार।।
जघा छोड़ के जघा बनाय।
इही जघा मा जिनिस अमाय।।
-पठेरा

581- गाड़ा बइला इहाँ चलाय।
सटा-सटा बड़ मार भगाय।
नान्हें लउठी डोरी चाम।
आथे ये खेदे के काम।।
-कोर्रा

582- गड़हा गाड़ी खूब भगाय।
अर्र तता ता बोल सुनाय।।
एक कोर खीला ठोंकाय।
य लउठी हा कार कहाय।।
-तुतारी

583- लाम बाँस बल्ली ला डार।
झींक-तान के बाँधय तार।।
गिल्ला लत्ता इहाँ सुखोय।
हर घर मा खच्चित होय।।
-डंगनी

584- इही डहर ले निकलत आय।
बड़े फजर सूरुज ललियाय।।
रोज उवय बेरा बन छाय।
इही दिशा सब जल चढ़हाय।।
-उत्ती

585- दिनभर सूरुज रेंगत जाय।
घूमत-घामत बेर पहाय।।
इही दिशा मा संझा आय।
उत्ती के ये उलट कहाय।।
-बुड़ती

586- इही दिशा हे यम के द्वार।
रहिथें रक्सा डेरा डार।।
अइसन कहिथें मनखे यार।
कोन दिशा ये करव विचार।।
-रक्सेल

587- इही दिशा मा रहय कुबेर।
करय न कखरो करा अँधेर।।
धन दौलत सुख के भंडार।
कोन दिशा ये सोंच विचार।।
-भंडार

588- बर पीपर के राहय छाँव।
एक ठौर ये होवय गाँव।।
जिहाँ सबो मनखे जुरियाँय।
बइठ इहाँ झंझट निपटाँय।।
-गुड़ी

589- बरसाती कीरा ये मान।
दूनों कोती मुँहु हे जान।।
माटी गोबर कचरा खाय।
खा-खा खातू गजब बनाय।।
-गेंगरवा

590- पाँखी हे पर तँउरे जाय।
दिनभर पानी बीच पहाय।।
सादा पंछी मछरी खाय।
चोंच पाँव राहय ललियाय।।
-बदक

591- भुँइया पानी मा रहि जाय।
माढ़े लकड़ी कस पटियाय।।
दाँत जबरहा बड़का खोल।
देखत मा मन काँपय झोल।।
-मँगरा

592- अपन खोंधरा गजब बनाय।
दरजी चिरई इही कहाय।।
एखर घर ला देखन भाय।
सीख कहाँ ले येहा आय।।
-बया

593- लगै परेवा के परिवार।
पर एखर नान्हें आकार।
सिधवा येला पंछी जान।
रहै खोंधरा उँचहा स्थान।।
-पँड़की

594- मिट्ठू जइसे एखर बोल।
मनखे जाथे देखत डोल।।
भुरुवा करिया होवय रंग।
करथे मन के राखव संग।।
-मैना

595- पाँखी रहिके दँउड़े जाय।
येला उड़ई कमती भाय।।
रहै गोरिया भुरुवा मान।
खेत-खार मा बहुते जान।।
-तितुर

596- पनिहा चिरई इही कहाय।
पानी मा ये समय पहाय।।
खोज-खोज मछरी ला खाय।
पानी ऊपर नाचत जाय।।
-पनबुड़ी

597- रतिहा जागय दिन उंघाय।
उल्टा लटके समय बिताय।।
बड़े-बड़े दू होथे कान।
बच्चा देथे सीधा जान।।
-चमगेदरी

598- दिनभर येहा सुते बिताय।
रतिहाकुन आँखी बर जाय।।
मुसुवा येला बहुते भाय।।
घरखुसरा इही कहाय।।
-घुघवा

599- घर के भीतर एखर ठाँव।
रेंगय भिथिया चटकै पाँव।।
माछी मच्छर गप-गप खाय।
कटे पुछी पाछू उग जाय।।
-घररक्खा

600- कुकुर जंगली इही कहाय।
बहुते ताकत भुजा समाय।।
जबर शिकारी येला जान।
बड़े-बड़े के हरथे प्रान।।
-हुड़रा
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055....©®

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