651- सिढ़िया खाल्हे जघा ल जान।
राहय वो हा खाली स्थान।।
परे-डरे धरथें सामान।।
तुरते येला तैं पहिचान।।
-गोड़ा
652- बड़हर के घर बहुते माल।
राखय बाड़ा सब म सँभाल।
गरुवा के ये डेरा आय।
माल मवेशी रात बिताय।।
-गोर्रा
653- घर अँगना मा जौन लगाय।
खाँसी सरदी भागे जाय।
ऑक्सीजन बहुते बरसाय।।
पाना फुलुवा डारव चाय।।
-तुलसी
654- होयव करु फर बीजा जान।
पाना डारा दवा खदान।।
पाके बीजा मीठ जनाय।
तेल गुठलु के हे पेराय।।
-लीम
655- डारा पाना दूध भराय।
थाँघा धरती जरी जमाय।।
पेड़ खड़े राहय सौ साल।
फरै गोलवा फर हा लाल।।
-बर
656- पातर झिल्ली पाना जान।
बर के जइसे इहू महान।।
ऑक्सीजन के हे भंडार।
फर पिकरी होवै रसदार।।
-पीपर
657- एखर पाना पतरी मान।
पेड़ दिखै खड़भुसरा जान।।
फागुन लाली आगी फूल।
पंथी जावय रद्दा भूल।।
-परसा
658- पाना दोना पतरी मान।
झँउहा-झँउहा फर ला जान।।
सरी पेड़ हा आवय काम।
संगी जानव एखर नाम।।
-मँउहा
659- झाड़ी जइसे रुखुवा जान।
काँटा-खूँटी हे पहिचान।
फरै गोलवा फर रसदार।
कच्चा पक्का खावँय यार।।
-लिमऊ
660- अमरैया मा एखर राज।
अँगना बखरी होवय आज।।
मौरे जब ये कोयल गाय।
पाना डारा पूजे जाय।।
-आमा
661- कोकी-कोकी फर हा सार।
नान्हें पाना छावय डार।।
फर के भीतर भरे चिचोल।
अमसुरहा हे एखर बोल।।
-अमली
662- हरियर पींयर फर हा गोल।
अमरित जइसे ये अनमोल।।
अमसुर कस्सा स्वाद जनाय।
सेहत सुग्घर देंह बनाय।।
-आँवरा
663- होय गोलवा भाजी पोठ।
डारा रटहा, झनकर गोठ।।
फर ला लकड़ी काड़ी जान।
इही आयरन गजब खदान।।
-मुनगा
664- कागज कुटका झन तैं जान।
समाचार तैं मन के मान।।
मितवा जे राहय परदेश।
ओखर लय-दय संदेश।।
-चिट्ठी
665- पहिरे रहिथे लत्ता लाल।
खड़े रहै चौके चौपाल।।
मुँह ले खावै जौन खवाय।
पेट चीर के धर ले जाय।।
-लेटर बाक्स
666- नान्हें पातर डोर लमाय।
दूर देश के बात बताय।।
मुँहुँ म दता अउ कान लगाव।
हालचाल सब सुनव सुनाव।।
-टेलीफोन
667- घर बइठे सब दरस कराय।
पिक्चर नाचा गीत सुहाय।।
समाचार मनरंजन ज्ञान।
जादू बक्सा येला मान।।
-टेलीविजन
668- ज्ञान खजाना भरे अपार।
बइठ जान अपने घर द्वार।।
गूगल बाबा होही भेंट।
संसो सब्बो देही मेट।।
-कम्प्यूटर
669- खाकी वर्दी तन मा डार।
आवय सबके अँगना द्वार।
झोला खाँध म ये लटकाय।
सुख-दुख के पाती दे जाय।।
-डाकिया
670- परथे जब कोनो बीमार।
सुजी दवा ले करय सुधार।।
राहय इन ला एखर ज्ञान।
रोगी कहय इही भगवान।।
-डॉक्टर
671- लइकामन के संगी जान।
बाँटय सब ला आखर ज्ञान।।
विद्यालय मा एखर राज।
बहुते देवय मान समाज।।
-मास्टर
672- सड़क मॉल घर पुलिया बाँध।
नक्शा खिंचई एखर खाँध।।
दे दिमाग सब ला समझाय।
कइसे बनही, बात बताय।।
-इंजीनियर
673- वरदी खाकी बड़ दमदार।
जान-मान के हें रखवार।
अपराधीमन अउ अपराध।
इँखर बुतावै येमन साध।।
-पुलिस
674- पहिरै सुग्घर करिया कोट।
सहै नहीं येमन न्याय म चोट।।
गोठकार बड़ इन ला जान।
ज्ञान कानूनी बहुते मान।।
-वकील
675- कथा कहानी रचनाकार।
उपन्यास ला दँय आकार।।
करके बहुते सोंच विचार।।
गद्य रूप पुस्तक साकार।।
-लेखक
676- अपने अंतस भाव उतार।
कागज के कुटका मा डार।।
रचै गजल कविता अउ छंद।
पढके मन मा उपजै आनंद।।
-कवि
677- अपन भाव मा भरथे रंग।
रिंगी चिंची ब्रश कुचिया संग।।
सुन्ना-सुन्ना जघा सजाय।
जस के तस ये चित्र बनाय।।
-चित्रकार
678- मोटर गाड़ी रेल चलाय।
सब ला मंजिल तक पहुँचाय।।
हाथ म हेंडिल, ब्रेक ह पाँव।
गाड़ी इँखरे असली ठाँव।।
-ड्राइवर
679- सुग्घर सेवाभावी जान।
कोनो ला नइ कहँय बिरान।।
सादा कुरता कैप लगाय।
दीदी सबके इही कहाय।।
-नर्स
680- मास्टर येमन होवय तेज।
पढ़हावँय जाके कॉलेज।।
लइकामन के भाग्य बनाय।
संगी बोलव काय कहाय।।
-प्रोफेसर
681- सरकारी सेवक सरकार।
अपन जिला के लंबरदार।।
जनता के सब काम कराय।
अघुवा सबले आगू आय।।
-कलेक्टर
682- समाचार मा खबर लगाय।
डरे बिना ये फरज निभाय।।
छानबीन कर कलम चलाय।
ये समाज मा नमन डर कहाय।।
-पत्रकार
683- घर कुरिया ला हमर बनाय।
बुता-काम बनिहार चलाय।।
खड़े-खड़े सब ला समझाय।
कभू बुता मा खुद भिड़ जाय।।
-ठेकेदार
684- जौन जिनिस बिगड़े पाय।
देखभाल के सुघर बनाय।।
करै मेहनत बुद्धि लगाय।
रोजी-रोटी रोज कमाय।।
-मेकेनिक
685- माटी के तैं सिरतों जान।
हाड़-माँस के संग परान।।
नख चुन्दी अउ चमकै चाम।
साँस चलत ले करले काम।।
-काया
686- काया के ये होथे सार।
सबले चतुरा बड़ हुशियार।।
इही इशारा करते जाय।
सब ला येहा बुता धराय।।
-मूँड़
687- एक बरोबर दूनों जान।
पानी भीतर डोंगा मान।।
करिया सादा पुतरी ताय।
पानी बड़ टिपटाप भराय।।
-आँखी
688- मुखड़ा बाहिर उभरे जान।
हाड़-माँस के कुटका मान।
रहय गाल के दूनों पार।
सुनथें येखर ले बस सार।।
-कान
689- आँखी खाल्हे उभरे जान।
एक गुफा दू रद्दा मान।।
साँसा येमा आये जाय।
महक बसौना इही बताय।।
-नाक
690- नाक तरी मा महल बनाय।
बड़का भारी खोल जनाय।।
दाना पानी जाय समाय।
पर खातिर ये खाय कमाय।।
-मुँहुँ
691- मुँहुँ भीतर के यह रखवार।
खड़ें सिपाही बड़ दमदार।।
चीर चाब के करदँय पीस।
चाकर चोक्खू इन बत्तीस।।
-दाँत
692- बिना हाड़ के जीव कहाय।
रहै सदा मुँहुँ दाँत सहाय।।
खान-पान के स्वाद बताय।।
चटर-चटर बड़ मया जताय।।
-जीभ
693- मुखड़ा के ये ऊँच मकान।
देंह मुकुट येला तैं जान।।
टिकली टीका इहें लगाँय।
भाव भजन मा रोज नवाँय।।
-माथा
694- मुखड़ा धड़ के येहा जोर।
एखर भीतर कंठ किलोर।।
साधय मुँड़ के भारी भार।
दिखय देंह हा सुग्घर सार।।
-टोंटा
695- धकधक धड़कै ये दिनरात।
बंद परै ता बिगड़ै बात।।
साफ लहू नस मा बगराय।
नान्हे मोटर पंप कहाय।।
-हिरदे
696- सरी देंह के खानादार।
पोंसन पालन करथे सार।।
खाये जेवन सुघर पचाय।
तन-मन ला ये पोठ बनाय।।
-पेट
697- सरी देंह मा बगरे जाल।
दँड़त रहै तन लहू ह लाल।।
पातर-पातर रेशा जान।
एखर भीतर बसथे प्रान।
-नस
698- लाली पानी नस बोहाय।
कटे-फटे मा बाहिर आय।।
खानपान ले बनथे जान।
लाल रंग मा जिनगी मान।।
-लहू
699- सरी देंह के बोहय भार।
जाँघ तरी एखर घर द्वार।।
गोल कटोरी हाड़ा ताय।
उठक बइठ ला इही कराय।।
-माड़ी
700- एड़ी खाल्हे येला मान।
सरी देंह ला बोहे जान।
हाथ हथेली जइसे ताय।
एखर बल मा रेंगत जाय।।
-पँउरी
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055
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