नवा जमाना~ टुरी
कइसन के फैशन करँय, टुरी पिलामन आज।
पहिरै कपड़ा छोटका, देखत आवय लाज।।
हिप्पी चुन्दी राखथें, बेनी ला कटवाय।
दिखय टुरा मन असन, नइ तो चिटिक लजाय।।
चुन्दी राखँय छोटकुन, नख ला बहुत बढ़ाय।
टिकली भुँइया मा परे, नखरा माथ चढ़ाय।।
लामी-लामा गोड़ मा, उँचहा सेंडिल होय।
पीरा उमड़ै पाँव मा, माथा धरके रोय।।
पढ़े-लिखे मा मन नहीं, फैशन मा अघुवाय।
टी.वी. फिक्चर देख के, घुमै-फिरै इँतराय।।
चटके टँगड़ी जींस हा, टॉप छोट पर जाय।
चुनरी बिन छाती रहय, लोफरमन बइहाय।।
चूरी कंगन पाटला, कहाँ दिखै अब हाथ।
टिकली बिंदी के बिना, सुन्ना राहय माथ।।
ब्यूटी पार्लर जाय के, रुआँ अपन उखनाय।
चंदन कपूर छोड़ के, पौडर मा पोताय।।
आँखी काजर मस्करा, जँउहर अकन लगाय।
नकल बिनौरी ला लगा, आँखी अपन सजाय।।
मुँहरंगी ला पोत के, होंठ अपन चमकाय।।
सेंट जबरहा सींच के, गली खोर गमकाय।।
असली तन-मन सादगी, बिरथा फैशन जान।
परंपरा ला छोड़ झन, इही हमर पहिचान।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055...©®
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