यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 24 मई 2021

दुलरवा दोहा ~ तरिया

तरिया

जौन गाँव तरिया रहय, निस्तारी सब होय।
जिहाँ कुआँ तरिया नहीं, माथ पकड़ सब रोय।।

तरिया मा पानी रहय, प्राणी पियास बुझाय।
मनखे खलखल ले अमित, कपड़ा धोय नहाय।।

तीर तार तरिया रहै, खेत-खार हरियाय।
बड़ सुग्घर पर्यावरण, सब ला गजब सुहाय।।

तरिया डबरी के रहत, बोरिंग पानी आय।।
बिन तरिया जम्मों जघा, गरमी परत सुखाय।।

बादर ले पानी गिरय, बिरथा बड़ बोहाय।
परिया भाँठा गाँव ले, तरिया मा सकलाय।।

तरिया के पानी अमित, आय सिंचाई काम।
राखे राहव गाँव मा, जिंदा एखर नाम।।

तरिया भीतर कीच मा, ढेंस पोखरा होय।
केंवट काँदा खोखमा, खावत तन-मन खोय।।

पानी के सकला जतन, तरिया तुमन बचाव।
धन के लोभी ला अमित, बइठ सुघर समझाव।।

संसो बाढ़त आज हे, तरिया देंवँय पाट।
अब विकास के नाँव मा, रुखराई दँय काट।।

अमित मिलै झन गंदगी, तरिया पानी संग।
बड़ बीमारी बाढ़ही, जिनगी होही तंग।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055...©®

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चंद्रयान अभिमान

चंद्रयान  ले  नवा  बिहान,  हमर तिरंगा, बाढ़य शान। रोवर चलही दिन अउ रात, बने-बने बनही  हर  बात, दुनिया होगे अचरिज आज, भारत मुँड़़ अब सजगे ताज, ...