बेजा कब्जा
बेजा कब्जा होत हे, गाँव शहर हर ठाँव।
पाँव मढ़ावत नइ बनय, कइसे तोला बताँव।।
चाकर चातर खोर गै, जस तइहा के बात।
हिजगा पारी मा मरँत, गाँव गली सकलात।।
गाड़ा रावन खोर हा, आज सोलखी होय।
धान खार ले लानथें, मुँड मा बोहे रोय।।
बेजा कब्जा होत हे, गाँव गली मइदान।
एको अब बाँचत नहीं, मरघटिया दइहान।।
देखँय सरकारी जघा, झट दैं पथरा गाड़।
अपन बनौकी लँय बना, जनहित जावय भाड़।।
देखा सीखी रोग ये, भाँठा परिया लील।
हाथ बँधे सरकार के, नेता देवँय ढ़ील।।
सुविधा मा बाधा बनँय, बेजा कब्जा झेल।
डर गरीब ला खा मरय, बड़हर मन के खेल।।
तरिया नँदिया नल कुआँ, सब कब्जा के भेंट।
अपने सुविधा ला अमित, अपन हाथ दँय मेंट।।
चाकर चौंरा फोकटे, लोगनमन बनवाय।
बिजली खम्भा हा घलो, अँगना मा घेराय।।
शहर गाँव जम्मों जघा, कब्जा के हे रोग।
निस्तारी मुस्किल अमित, बाढ़त जावय सोग।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़
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