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रविवार, 23 मई 2021

दुलरवा दोहा ~ खेती खार

खेती खार
अपने भुँइया मा गिरय, लहू पछीना धार।
देव मान सेवा करव, अपने खेती खार।।

खेती सरवन काज हे, जग के सेवा होय।
पेट पलै सबके बने, भले एक झन बोय।।

खेती सबले हे बड़े, मँझला हे बैपार।
अधम काज हे नौकरी, अमित भीख बेकार।।

खेती पूजा पाठ हे, महिनत एखर धर्म।
आलस अंतस हथकड़ी, साधव सेवा कर्म।।

खेती होथे चेतलग, अपने सेती जान।
भाई नौकर ले बुता, नाश किसानी मान।।

अपने खेती दम अपन, मेड़ पार मा जाग।
रतिहा घर मा जा सुते, काट चोरहा भाग।।

खुर्रा जोंतय खेत ला, तभे फसल हा होय।
नाँगर कच्चा मा चलय, फेर बीज हा सोय।।

बन कचरा उपजै बिकट, वो खेती बेकार।
बइला दूनों बेंच के, धंधा पानी डार।।

बिजली चमकै चैत मा, पानी हा बइसाख।
लहकत गरमी जेठ मा, खच्चित बरसा लाख।।

परहित कारज मान के, खेती करय किसान।
सरी जगत भोजन करय, अनदाता हलकान।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़

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