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शनिवार, 22 मई 2021

जानव जनऊला ~ (751-800)

751- कहाँ गरू हे पाव छटाक।
बात बता का हरै फटाक।।
दू झन मा उचथे ये भार।
एखर ले सब बाँचव यार।।
झगरा/ठेनी

752- पानी भीतर समय पहाय।
लाम-लाम चुन्दी बगराय।।
बारा लइका पेट उपजाय।
कहाँ गोसईया मिल पाय।।
-ढुलेना कांदा

753- बिना मुँड़ी के चिरई यार।
ओखर पाँखी कई हजार।।
सके नहीं ये कभू उड़ाय।
पर सब ला रद्दा देखाय।।
-किताब

754- दू लुगरा अउ नारी एक।
पहिरै रहिथे येहा नेक।।
उघरा एखर तभो पिछोत।
घूमत राहय चारों कोत।।
-माछी

755- उचकी घोड़ा करै चभरंग।
धर लगाम बुड़ एखर संग।।
बइठे राहँय ससुर दमांद।
देखत हाँसय अइसन फांद।
-बॉल्टी, डोरी, कुआँ

756- तीन गोड़ के तितली ताय।
बुड़के रोजे तेल नहाय।।
चटनी संगे बड़ इँतराय।
लइका सियान बहुते भाय।।
-समोसा

757- उत्ती कोती जोगी आय।
एक गोड़ मा ध्यान लगाय।
सादा टोपी मुँड़ मा डार।
घूमय येहा खारे-खार।।
-पिहरी

758- चकरी रे चकरी ये टाँठ।
रसा भरे बड़ गाँठे गाँठ।।
भँवरी जइसे गोले गोल।
खा के निकलै मीठा बोल।।
-जलेबी

759- रात-रात भर नँगते रोय।
लात तान ये दिनभर सोय।।
कुरता बेनी सादा सार।
आवय देखत ये अँधियार।।
-मोमबत्ती

760- टुरी पँडर्री ला जर आय।
टुरा मेछर्रा लेग भगाय।।
दिखै गोलवा पातर पान।
चीथ-चीथ ले डारै प्रान।।
-रोटी

761- एक आँख जाला भरमार।
दिन भर बइठे डेरा डार।।
रतिहाकुन होवय तैयार।
बाँटय बहुते जग उजियार।।
चन्दा

762- दू अक्षर के नाँव सरेख।
उलट-पुलट के जादू देख।।
सोज लिखे मा घोड़ा खाय।
उलट परे ता नाच नचाय।।
-चना

763- एक टोनही घर-घर पाव।
करनी देखत सबो डराव।।
रसा चुहक हाड़ा ला खाय।
मुँह कोती आगी उछराय।।
-माचिस

764- कलगी हे कुकरा झन मान।
चार पाँव मा रेंगय जान।।
पुछी बेदरा जइसे लाम।
कंठ नील हे, बोलव नाम।।
-टेटका

765- आगू कोती गाँठे गाँठ।
पुछी टेड़गा भारी टाँठ।।
आठ पाँव मा रेंगत जाय।
छूवय तेला जहर चढ़ाय।।
-बिच्छी

766- लार निकालै जाल बनाय।
फाँदा फाँसे चलते जाय।।
माछी मच्छर किरवा फाँस।
खावय येहा सब ला हाँस।।
-मेकरा

767- बाहिर छछले पाना डार।
भीतर फरथे गजब गुदार।।
लाली सादा जम्मों खाय।
मीठ-मीठ ये सब ला भाय।।
-शंकरकांदा

768- एक महल मा बावन द्वार।
राहय सोला सौ पनिहार।।
बिना बनी पानी भरवाय।
जुरमिल जम्मों बुता बनाय।।
मछेर के छाता

769- करिया बीजा सादा खेत।
देखँय दुनिया करके चेत।।
बोंवइया हा गावय गीत।
सबो खवइया एखर मीत।।
-किताब

770- कोनो मा दू, कोनो तीन।
कोनो मा ये एक्के झीन।।
जर सुद्धा सब धरै उखान।
दाब खखौरी बहुते खान।।
-चनाबूट

771- सजे एक कुकरा हा आय।
रेंगत-रेंगत थक हो जाय।।
लानव चाकू घेंच ल काट।
फेर चलय वो खटर खटाक।।
शीश/पेंसिल

772- कच्चा मा जम्मों झन भाय।
गेदराय हा अबड़ मिठाय।।
सबो जीव बर सिरतों आय।
पाके मा ये बड़ करुवाय।।
-तीन अवस्था

773- पिढवा बइठे रानी मान।
मुँड़ मा आगी सिरतों जान।।
घेरी-बेरी मुँड़ी कटाय।
कोनो एखर पार न पाय।।
-मोमबत्ती

774- दुब्बर पातर बड़ गुणकार।
मुँड़ी नवाये रेंगय सार।।
जब आवय ये कखरो हाथ।
बिछड़े मन हा पावय साथ।।
-सुजी सूँत

775- फर येला खावँय दिनरात।
एखर बिन बनय न बात।
मिलय न ये राजा दरबार।
फूलै फरै न कोनो डार।।
-नून

776- हरियर हावय चोला मोर।
चरिहा-चरिहा लेवँय टोर।।
जब-जब मोला कोनो खाय।
लाली ओखर मुँह हो जाय।।
-पान

777- देंह पाँव पानी टपकाय।
देखत तरुवा तिपते जाय।।
तुरते खोजे परथे छाँव।
या सपटे बर परथे ठाँव।।
घाम/मँझनिया

778- करिया मुँहुँ के दिखथे यार।
एखर वश मा सब संसार।।
मन भीतर एखर उजियार।
जिनगी देथे हमर सँवार।।
-कलम

779- कपड़ा बदलै ये हर साल।
फागुन बाँधय मँउर कमाल।।
सबके मुँहुँ देखत पनछाय।
अमरैया ले घर मा आय।।
-आमा

780- एक्के फुलुवा लगय गुलाब।
पावय कोनो नहीं नवाब।।
होवय ना माली के बाग।
दिखय रात, बिहना ले भाग।।
-चन्दा

781- पहिली-पहिली दही जमाय।
पाछू दुहथे जावय गाय।।
लइका ओखर पेट समाय।
हेर लेवना हाट म जाय।।
-कपसा

782- एक जीव ये करिया खास।
करिया जंगल करय निवास।।
पानी पीयय लाले लाल।
अँगठा के नख एखर काल।।
-जुआँ

783- कपड़ा एखर नहीं तनाय।
कोनो येला नइ सिल पाय।।
एक बछर मा एक्के बार।
पहिरे लत्ता रखय उतार।।
-साँप के जोंखी

784- नान्हें बस्ती रहै बसाय।
घना-घना घर इहाँ बनाय।।
बसे बड़े सब राहँय वीर।
पहुना आदर, धरै न धीर।।
दतैया के छाता

785- दँतली हावय येहा यार।
फेर दाँत एखर दमदार।।
भूख लगै ता सहि नइ पाय।
कच्चा सुख्खा सबो चबाय।।
-आरी

786- एक कुआँ मा घाट हजार।
आ घुसरै सौ-सौ पनिहार।।
बिना बनी के करथें काम।
सोंच बतावौ एखर नाम।।
-चलनी

787- एक सींग के येहा गाय।
जौन खवाले खाते खाय।।
बइठे-बइठे बड़ पगुराय।
पेट कोत ले निकले जाय।।
-जाँता

788- टंच टुरी हा टन्नक टाँय।
बुता-काम मा साँये साँय।।
ठोंक ठठा के सोज बनाय।
हाथ पकड़ येला रेंगाय।।
-हथौड़ी

789- बड़े दुवारी हिरना ताय।
पानी पियै न खाना खाय।।
किच-किच ये नँगते नरियाय।
छोड़ मुँहाटी कहूँ न जाय।।
-कपाट

790- हरियर डंडी मुँड़ मा जान।
कुरता खापे लाल कमान।।
देख ताक के खोल जबान।
तौबा-तौबा करय पठान।।
-हरियर मिरचा

791- एक गहिर अइसन ताल।
देखत मा बड़ होय कमाल।।
पानी तरिया मा हे खूब।
राई घलो नइ जावय डूब।।
-करा

792- एक जीव ये असली मान।
बिन हाड़ा के येला मान।।
गोड़ बिना ये रेंगत जाय।
लाली पानी बहुते भाय।।
-जोंख

793- छोटे मुँह अउ बड़का बात।
करथे येहा दिन अउ रात।।
बैरीमन हा देख डराँय।
बोली एखर धाँये धाँय।।
-तोप

794- पानी भीतर उपजै साग।
होय जबरहा एखर भाग।।
डारा एखर सबो बिसाय।
चना दार के संग मिठाय।।
-ढेसकांदा

795- कहाँ देंह बस मुँड़ देखाय।
बड़ दुरिहा मा रहे टँगाय।।
जटा मुड़ी मा बहुते होय।
गोरा लइका भीतर सोय।।
-नरियर

796- एक टुरी हा गोली खाय।
पेट भीतरी कहाँ पचाय।।
पर येला तो थूँकन भाय।
परै जौन ला वो मर जाय।।
-बंदूक

797- रहिथे ऊपर ऊँच अगास।
आथे येहा तो चउमास।।
ऊपर-ऊपर चमके जाय।
धम-धम खाल्हे पोठ सुनाय।।
-बिजली

798- चार कोकड़ा एक्के साथ।
चार बदक पकड़े हे हाथ।।
नौ रंगे मिट्ठू उड़ जाय।
फेर तहाँ ले उलट बिछाय।।
-खटिया

799- रोज-रोज बड़ चलना भाय।
पाँव नहीं पर आवय जाय।।
हालय डोलय बोल सुनाय।
एक इंच पर घुँच नइ पाय।।
-कपाट

800- बिना पंख के उड़ते जाय।
आसमान ला छू के आय।।
घेंच बँधे हे पातर डोर।
इही सहारा गजब हिलोर।।
-पतंग
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055

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