यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 26 अक्टूबर 2023

फेर छले बर आहीं...

फेर छले बर आहीं...हमर गाँव म....

गैरी गजब मताहीं हमर गाँव म।
फेर छले बर आहीं हमर गाँव म।


चउक चउक अब चुगली-चारी। चरचा होही भारी-भारी। 
आहीं बनके हमरे हितवा। बाहिर छेरी, भीतर चितवा।
निच्चट के नजराहा नखरा। पाँच बछर बर लहुटे पखरा।
घर-घर ला लड़वाहीं हमर गाँव म। फेर छले बर आहीं हमर गाँव म।...1

कइहीं हम जन-जन के आसा। चपक खखोरी सकुनी पासा।
बाना धारे सादा सिधवा। रचे-बसे हे अंतस गिधवा।
थथर-मथर करहीं मिठलबरा। चतुरा इन चिम्मड़ चितकबरा।
ररुहा कस रतियाहीं हमर गाँव म। फेर छले बर आहीं हमर गाँव म।...2

बाते-बात म दीदी-भइया। पार लगाहू मोरो नइया।
धपोरवामन धुर्रा धरहीं, टपटप सबके पाँव ल परहीं।
थूँके थूँक म बरा चुरोहीं। सात जनम के आस पुरोहीं।
हमरे किरिया खाहीं हमर गाँव म। फेर छले बर आहीं हमर गाँव म।...3

गैरी गजब मताहीं हमर गाँव म।
फेर छले बर आहीं हमर गाँव म।

सर्जक- कन्हैया साहू "अमित"
शिक्षक-भाटापारा (छत्तीसगढ़)
गोठबात- 9200252055

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चंद्रयान अभिमान

चंद्रयान  ले  नवा  बिहान,  हमर तिरंगा, बाढ़य शान। रोवर चलही दिन अउ रात, बने-बने बनही  हर  बात, दुनिया होगे अचरिज आज, भारत मुँड़़ अब सजगे ताज, ...