अलकरहा दोहा-1
भक्ति भाव भक्कम भरे, बंदन बदन बुकाय।
राम-राम जिभिया रटे, छूरी पीठ लुकाय।।
चंदन चोवा पोत के, सादा वेश बनाय।
रंगरेलिहा मन हवै, अंतस जबर खखाय।।
जप-तप पूजा पाठ ले, नइ छूटय जी पाप।
मन बैरागी जे करय, वोला का संताप।।
माया मोह मा मन रमे, भगवन मंदिर खोज।
अंतस अपने झाँक ले, प्रभू दरस हे रोज।।
नौ दिन देवी देहरी, भंडारा दिनरात।
लाँघन महतारी मरै, कइसे बनही बात।।
देवी सेवा जस करै, करके कन्या भोज।
महतारी के कोंख मा, बेटी हत्या रोज।।
तन ला तपसी तैं करे, मन मा महुरा खोट।
देवी दरशन आड़ मा , नारी तन मा चोट।।
कर्मकाण्ड सब अबिरथा, कतको करले जाप।
असल करम जब बिगड़हा, बढ़ते जाही पाप।।
पहिरे कंठी मुंदरी, माला बड़ ढरकाय।
गंगा जमुना के बुड़े, मन नइ तो फरियाय।।
ढोंग ढंचरा ढोंगिया, छोड़ सुवारथ काम।
आनी-जानी हे जगत, परहित कर ले नाम।।
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अलकरहा दोहा-2
लिगरी लाई जे बुड़े, आगू मजा उठाय।
लुटलुटहा बनके फिरै, पाछू बड़ पछताय।।
कथनी करनी मा फरक, उही करँय जी राज।
सत्ता उँखरे हाथ मा, चिटिक लगय ना लाज।।
बँगला मोटर कार हे, भरे तिजोरी माल।
मया पिरित रीता परे, कइसन तैं कंगाल।।
डोंगा हावय हाथ मा, पर नइ हे किलवार।
नँदिया भँवरी मार के, करै अगोरा यार।।
जंगल झाड़ी मा मिलय, सिधवा हितवा ढोर।
गाँव शहर बस्ती फिरै, जान माल के चोर।।
मंडल के गलती भुला, झन तैं छापा छाप।
पइसा वाला के इहाँ, बड़का होथे पाप।।
सुरता छोटे के करव, एहू आथे काम।
बूड़त मनखे ला घलो, तिनका लेथे थाम।।
जेखर घर माटी हरय, ओखर घर बरसात।
कोन कहय के ये हरय, अमित भाग्य के बात।।
जिनगी कखरो जेब मा, रहय नहीं ये जान।
कहिथे अइसन जौन हा, वो मूरख नादान।।
पइसा वाला के कदर, करथे आज समाज।
अमित गरिबहा डाँड़ दै, कहाँ हवय रघुराज।।
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अलकरहा दोहा-03
मनखे मरथे भूख मा, मंदिर छप्पन भोग।
अकल परे पथरा अमित, आवय देखत सोग।।
पखरा के पूजा करत, पखरा होगे सोंच।
दया मया अंतस मरै, एक दुसर ला नोंच।।
पथरा के मुरती दिखय, गुरुद्वारा दरगाह।
मंदिर मस्जिद चर्च हा, करय अमित गुमराह।।
आज धरम के नाँव मा, लोगन ला डरवाय।
भक्ति भाव हा धर पकड़, कहाँ कोन रजवाय।।
पंड़ित फादर मौलवी, भगवन दूत कहाय।
तन ला तो रंगे हवँय, अंतस नँगत खखाय।।
अमित चढ़ावा बड़ चढ़ै, सेवक मालामाल।
भोग भरै निज पेट मा, मुरती होय कँगाल।।
पखरा पूजे का मिलै, कोनो मरम बताय।
रद्दा के पथरा बने, खड़े बाट देखाय।।
माटी पखरा नाग मा, देखव दूध चढ़ाय।
जिंदा भेंटय साँप ता, लौठी मार भगाय।।
पखरा ईंटा जोर के, मस्जिद ऊँच बनाय।
ऊपर पोंगा ला धरय, चढ़ नँगते चिचियाय।।
पाना फुलवा ला चढ़ा, का पाबे इंसान।
भेदभाव छल छोड़ दे, इही बनै वरदान।।
एक लड़त हे राम बर, एक अमित रहमान।
अँधरा करदिस ये धरम, मरय सिरिफ इंसान।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़
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