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शनिवार, 22 मई 2021

जानव जनऊला ~ (701-750)

701- नान्हें नोनी फुलमत नाँव।
फुँदरा गाँथे बइठे ठाँव।।
नोनी फुँदरा अपन गवाँय।
गाँव गली मा खोज कराँव।।
-पैली/काठा

702- कर्रा कुकरा उज्जर जान।
अँइठ पुछी किकियाथे तान।।
मिलथे बहुते येला मान।
पूजा खोली एखर स्थान।।
-शंख

703- पाछू पातर आगू मोठ।
कुछु करै न येहा गोठ।।
मुँह मा एखर आगी बार।
भुकभुक कुहरा फेंकय मार।।
-चोंगी

704- करिया भुरवा होवय रंग।
आवय-जावय हमरे संग।
परे रहय परछी परसार।
पुछी उठा के खसले डार।।
-पनही

705- खाकी कपड़ा मा लपटाय।
ऊपर ले मुँदरी पहिराय।।
फोंक टोर के फेंकय यार।
पाछू कोती चाँटय झार।।
-चोंगी

706- सादा हाड़ा परे उतान।
जनम समुंदर मा ये जान।।
राहय एखर पेट चिराय।
रहिथे कुबरा पीठ उठाय।।
-कौड़ी

706- एक गोड़ के घोड़ा यार।
दू झन येया होय सवार।।
आगू-पाछू एक न जाय।
बेड़ा ऊपर बिकट भगाय।।
-रैहचूली

707- उतरै घोड़ी ऊँच पहार।
चाल रेचकी जानँव सार।।
पिला अठारा कोरी जान।
करै नहीं काँही नुकसान।।
चलनी

708- अटपट छेरी फटफट कान।
खड़े पाँव दू मँगरा मान।।
खबखब खावै कतको धान।।
पुरखौती के हरय निसान।।
-ढ़ेकी

709- पखरा मा हे खाँच खनाय।
हबर-हबर बहुते ये खाय।।
इँखर पेट मा खिला गड़ाय।
कान पकड़ के गोल घुमाय।।
-जाँता

710- एके पइसा के हे मोल।
बेनी संगी जावय डोल।।
कोर गाँथ के खोंच पिछोत।
आगू-पाछू कोनो कोत।।
-फुंदरा

711- खूब कुटेला कुटते आय।
मूँछ ददा के टुटते जाय।।
दाई के तो पेट चिराय।।
आगर भुरुवा चोला पाय।।
-गहूँ

712- दिखथे लटके लोढ़ा लाम।
ढेंठ़ा खाल्हे बीख अमाय।।
रहै भीतरी तीन मकान।
कचर-कचर हे एखर गान।
-खीरा

713- रहै पोंगरी गुजगुज पान।
फर लड़वा के जइसे जान।।
खेत-खार बखरी मा होय।
जौने काटय तौने रोय।।
-गोंदली

714-  लाली करिया दाना सार।
भीतर उज्जर सेंदुर यार।।
हरियर पाना धनिया मान।
करौ तुरत एखर पहिचान।।
-मसूर

715- फरै न फूलै कोनो डार।
एखर बिन उन्ना संसार।।
जनम धरे हन तब ले खान।
नुनछुर नँगते, कर पहिचान।।
-नून

716- फरे पान के ओधा जान।
हरै माँस के लोंदा मान।।
मुँड़ एखर हे काँटादार।
राँध संग आलू मिंझार।।
-भाँटा

717- झिमरी नोनी चुन्दी चार।
देंह-पाँव भुँइया के पार।।
दुधवा सादा एखर रंग।
राँध बने तैं भाटा संग।।
-मुरई

718- देखे मा हावय ये लाल।
छुवे म गुजगुज एखर हाल।।
पहिरै हरियर टोपी आय।
संग सबो के रंग जमाय।।
-पताल

719- घेंच कटै धरती मा आय।
बचें देंह गंगा बूड़ नहाय।।
हाड़ा सादा पटपट ताय।
चाम सुरर के बेंचे जाय।।
-पटवा/सन

720- नान्हें लइका बहुते बाढ़।
दाढ़ी मेछा हावय गाढ़।।
दिखत म हे ये कुसियार।
फरथे फर हा बीच कटार।।
-जोंधरी

721- रिंगी-चिंगी फूले फूल।
फर काँटा घेरा मा झूल।।
बिलई आँखी फर ला मान।
उपजै बन कचरा कस जान।।
-भसकटिया

722- मिलै नहीं राजा दरबार।
उपजै कोनो खेत न खार।।
नइ बेंचावय कहूँ दुकान।
देखत संसो छाय किसान।।
-करा

723- सोन तिजोरी जइसे मान।
लोहा ढकना ऊपर जान।।
भीतर निकलै पखरा चार।
जंगल हा एखर घर द्वार।।
-तेन्दू

724- रुखुवा लोहा जइसे सार।
फूल सोनहा फुलथे मार।।
फर चाँदी कस उज्जर होय।
एखर भीतर पखरा सोय।।
-बंभरी

725- अपन सगा घर सगा ह जाय।
धरय सगा ला मार ठठाय।।
ठूक-ठाक बस गोठ सुनाय।
कोनो नइ तो रोवय गाय।।
-हथौड़ी

726- बिन पानी के उज्जर सूत।
गटगट पीयय सबके पूत।।
ताकत के ये हरय खदान।
एखर दाता बहुत महान।
-गोरस

727- बीख टोनही नोनी जान।
बारी बखरी बीच मकान।।
देखत मा येहा डरवाय।
धरते मा बहुते रोवाय।।
-मिरचा

728- चार सींग मुँड़ मा होय।
माल मसाला जिनगी खोय।।
हरियर पुछी म नरियर लाल।
कारी पर ये करय कमाल।।
-लवाँग

729- फुलुवा फर घूमत रहि जाय।
टोरय एके सब झन खाय।।
भर-भर टुकना बड़ बेंचाय।
खा-पी एखर सोर लमाय।।
-बिरो पान

730- बिन पानी के महल बनाय।
अखरा पखरा ऊँच रचाय।।
दू पइसा ला द्वार मढ़ाय।
भीतर लाखों संग समाय।।
-दियाँर

731- गोड़ चार अउ दूठन पाँख।
मुँड़ ले बड़का एखर आँख।।
किरवा पींयर छाता छाय।
पुछी कोत मा बीख भराय।।
-दतैया

732- थारी कंचन माढ़े ताल।
चिक्कन चाकर एखर हाल।।
टोरय जोरय लाय मढ़ाय।
पंगत मा सब जेवन पाय।।
-पुरईन पान

733- चमकै थारी तरिया पार।
रंग सोनहा सुग्घर सार।।
नइ तो येहा हाथ धराय।
आसमान मा चढ़ते जाय।
-सूरुज

734- एक खेत मा बगरे जान।
धान गहूँ गाड़ा भर मान।।
इँखर बीच मा गोटी एक।
सबले सुग्घर सबले नेक।।
-चंदा/चंदैनी

735- लेन-देन के नइ हे बाय।
जाथे तेने देते जाय।।
आवय तौने खुल्ला भाय।
संगी जानव येहा काय।।
-कपाट

737- घर भर के करधन एक।
पर कनिहा हवय अनेक।।
घर अँगना के ये रखवार।
रहिथे बाहिर डेरा डार।।
-बारी परदा

738- लइका ये रेंगत ना आय।
खाँध-खाँध मा बइठे जाय।।
बीच-बीच मा मार खवाय।
मार खाय अउ सुर मा गाय।।
-बाजा

739- एक साधु हा तरिया पार।
ध्यान लगावै घंटा चार।।
देखय खाल्हे नैन गड़ाय।
मेढ़क मछरी बिन-बिन खाय।।
-कोकड़ा

740- बाप डड़ंगा बहुते लाम।
बेटा पोन्डा लेवँय नाम।।
नाती निन्धा छटकू राम।
आवँय तीनों बहुते काम।।
-पेड़,फर,फूल

741- जब आना हे तब नइ आय।
नइ आना हे आ के छाय।।
बहुते जल्दी ये बउराय।
रहे के जुच्झा कभू पहाय।
-नँदिया/नरवा

741- छिंदक-छिंदक छाये फूल।
फर हा फरथे डारा झूल।।
बारा राजा होय मँजूर।
एक पेड़ बस्ती भर पूर।।
-डूमर

742- कारी छेरी गर मा डोर।
जाय हाट मा मारय जोर।।
हाथ अपन दूनों तनियाय।
ऊँच-नीच अड़बड़ डोलाय।।
-तराजू

743- नाँगर जोतँय भाई पाँच।
नइ आवय कोनो ला आँच।।
कोपर तीरै मिल दस भाय।
बिहना-बिहना सबो कमाय।।
-दतुवन

744- एक निसैनी एक्के पाँव।
देवय सब ला सुग्घर छाँव।।
पक्ति आठ बाराठन जान।
बरसा गरमी संगी मान।।
-छाता

745- एक बियारा एक्के द्वार।
बत्तीस उहाँ पहरादार।।
खीरा बीजा जइसे जान।
हाड़ा सादा कस पहिचान।।
-दाँत

746- अक्कड़ जक्कड़ लकड़ी बाँध।
एक पाट मा जम्मों छाँध।।
झिथरी चुन्दी हा छरियाय।
कोर-कोर ये हा समराय।।
- ककई

747- चार गोड़ के चप्पो खाय।
पीठ बइठ निप्पो इँतराय।।
आइस गप्पो चोंच लमाय।
निप्पो धर गप्पो उड़ियाय।।
-भँइसा, मेचका, चील

748- दूनों कोठा गोबर ढेर।
एक हाथ मा लेवय हेर।।
कभू-कभू रेरा बोहाय।
घेरी-घेरी तब पोंछे जाय।।
-नाक

749- नान्हें नरियर कुरता लाल,
राखै हरियर पुछी सँभाल।।
चटनी एखर चाँटत खाव।
तुरते ताही नाँव बताव।।
-बंगाला

750- फूल एकठन फूलय खास।
जोत्था फर हा फरै पचास।।
हाड़ा नइ हे, गुदा भराय।
फेंक फोकला दुनिया खाय ।।
-केरा फर
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़

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