यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 19 मई 2021

दुलरवा दोहा ~ रोटी

रोटी
अंगाकर टिक्का कहव, अमित चपाती रोट।
फुलका सोंहारी नाँव हे, रोटी बड़का  छोट।।

रोटी खाले पेटभर, सुग्घर गहूँ पिसान।
माथ नवा सरधा सहित, जय-जय मोर किसान।।

रोटी फुलुवा के सहीं, आगी मा सेंकाय।
बिना जरे निज स्वाद ला, कइसे सेंक बढ़ाय।।

करके महिनत जौन हा, रोटी ला हे खाय।
ओमा कतका स्वाद हे, सिरतों उही बताय।।

रोटी बनथे जब कभू, कखरो मुँह के कौर।
बहुत मिठाथे तब अमित, बढ़ै खुशी के ठौर।।

बड़का आगी पेट के, दुनिया देख डराय।
रोटी चटनी मिल दुनों, दुरिहा भूख भगाय।।

काम कमाई जे करय, रोटी के हकदार।
बइठे-बइठे खात हे, वोला हे धिक्कार।।

रोजी-रोटी झन नँगा, खा झन कखरो लूट।
पाबे नँगते आशीष तैं, बरसै मया अटूट।।

रोटी-पानी बर फिरै, बाहिर मा परदेश।
जौन करै महिनत गजब, ओखर मिटै कलेश।।

रोटी बेटी के नता, जग मा सबले सार।
बसथे हिरदे तीर मा, ओही अनचिन्हार।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चंद्रयान अभिमान

चंद्रयान  ले  नवा  बिहान,  हमर तिरंगा, बाढ़य शान। रोवर चलही दिन अउ रात, बने-बने बनही  हर  बात, दुनिया होगे अचरिज आज, भारत मुँड़़ अब सजगे ताज, ...